Publisher's Synopsis
About the Book द्वंद्वात्मकता, वैचारिकता और संशय, उहापोह, विसंगति- विडंबना, स्मृति और विस्मृति, रंग और बदरंग, रूप और विरूप के अगणित असंख्य रंगों की पहचान एवं परख की कविता के एक सशक्त नये हस्ताक्षर का प्रस्तुत संग्रह पाठक का ध्यान बार-बार अपनी ओर खींचता है, उसको बिलंभने (थोड़ा रुकने) का ठौर देता है और बाद में पाठक कहता है, "यह बिल्कुल मेरी और मेरे मन की बात है।" विज्ञान और अभियाँत्रिकी के होनहार विद्यार्थी रहे अभिषेक शुक्ल के पहले काव्य-संग्रह 'श्वेत पृष्ठ' से ही युवा कवि की काव्य-प्रतिभा, कथन की भंगिमा में कविता की अपार संभावनाओं की आश्वस्ति दी थी। प्रस्तुत संग्रह में अभिषेक शुक्ल अपनी जड़-जमीन, गांव-गिराव और संस्कृति से जुड़ाव के साथ परिवेश के नित्य नये बदलाओं से जूझते हुए अपनी काव्य यात्रा के दूसरे सोपान पर कविता के नए क्षितिज पर गवाक्ष खोजते व खोलते नजर आते हैं।
About the Author अभिषेक शुक्ल का सबसे सही परिचय उनकी कविताओं के अलावा और कहीं नहीं मिल सकता। अभिषेक मानते हैं कि वे अकेले नहीं हैं, बल्कि उनके अंदर एक अलग दुनिया है; जिसका आधार प्रेम, आदमियत, संवेदना आदि है। उनकी कविताएँ उनके अंदर छुपी दुनिया के हज़ारों-लाखों लोगों से परिचय करवाती हैं। अपनी पहली किताब 'श्वेत पृष्ठ' से हिन्दी के बड़े संसार में अपनी पहचान बना चुके अभिषेक पेशे से एक इंजीनियर हैं। इन्हें नदी, पहाड़, सागर, पेड़, चिड़िया, गाँव-शहर या आसान भाषा में कहें तो प्रकृति से अगाध प्रेम है। अभिषेक चिट्ठियाँ लिखने और पढ़ने के बहुत शौक़ीन हैं। आप भी उन्हें ईमेल, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर चिट्ठी लिख सकते हैं।