Publisher's Synopsis
रोज़ दिन एक-सा होता है। लेकिन आज ऐसा नहीं होगा। रेचल रोज़ सुबह वही ट्रेन लेती है। वह जानती है कि ट्रेन उसी सिग्नल पर रुकती है जहाँ से घर के पीछे बने बगीचों की क़तार नज़र आती है। उसे यहाँ तक लगने लगता है कि वह उन घरों में से एक में रहने वाले लोगों को जानती है। उसे लगता है उन लोगों का जीवन एकदम परफ़ेक्ट है। काश, रेचल भी उनकी तरह खुश रह पाती! अचानक वह एक हैरतअंगेज़ दृश्य देखती है और एक पल में सब कुछ बदल जाता है। रेचल ने जिन लोगों की ज़िंदगियों को दूर से देखा था, अब उसके पास उनका हिस्सा बनने का मौका है। अब वे लोग देखेंगे रेचल केवल ट्रेन पर सवार कोई आम लड़की नहीं बल्कि उससे ज़्यादा कुछ और भी है... 'सनसनीखेज़' - डेली मेल 'इस किताब ने मुझे रात-भर सोने नहीं दिया' - स्टीफ़न किंग 'साल की अविश्वसनीय कथाकार के लिए मेरा वोट'- द टाइम्स 'डरावने मोड़ से भरी किताब' - मेल ऑन संडे