Mati Mati Arkati

Mati Mati Arkati

Paperback (27 Jun 2016) | Hindi

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Publisher's Synopsis

कोंता और कुंती की इस कहानी को कहने के पीछे लेखक का उद्देश्य पूरब और पश्चिम दोनों के गैर-आदिवासी समाजों में मौजूद नस्ली और ब्राह्मणवादी चरित्र को उजागर करना है जिसे विकसित सभ्यताओं की बौद्धिक दार्शनिकता के ज़रिए अनदेखा किया जाता रहा है। कालांतर में मॉरीशस, गयाना, फिजी, सूरीनाम, टुबैगो सहित अन्य कैरीबियन तथा लेटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों में लगभग डेढ़ सदी पहले ले जाए गए गैर-आदिवासी गिरमिटिया मज़दूरों ने बेशक लम्बे संघर्ष के बाद इन देशों को भोजपुरी बना दिया है और वहाँ के नीति-नियन्ताओं में शामिल हो गए हैं। लेकिन सवाल है कि वे हज़ारों झारखंडी जो सबसे पहले वहाँ पहुँचे थे, कहाँ चले गए? कैसे और कब वे गिरमिटिया कुलियों की नवनिर्मित भोजपुरी दुनिया से गायब हो गए? ऐसा क्यों हुआ कि गिरमिटिया कुली खुद तो आज़ादी पा गए लेकिन उनकी आज़ादी हिल कुलियों को चुपचाप गड़प कर गई। एक कुली की आज़ादी कैसे दूसरे कुली के खात्मे का सबब बनी? क्या थोड़े आर्थिक संसाधन जुटते ही उनमें बहुसंख्यक धार्मिक और नस्ली वर्चस्व का विषधर दोबारा जाग गया और वहाँ उस अनजान धरती पर फिर से ब्राह्मण, क्षत्रिय, भूमिहार और वैश्य पैदा हो गए? सो भी इतनी समझदारी के साथ कि 'शूद्र' को नई सामाजिक संरचना में जन्मने ही नहीं दिया?

Book information

ISBN: 9788183618021
Publisher: Repro India Limited
Imprint: Radha Krishna Prakasan Pvt Ltd
Pub date:
Language: Hindi
Number of pages: 262
Weight: 336g
Height: 216mm
Width: 140mm
Spine width: 15mm