Publisher's Synopsis
यह संयोग है कि पिछले तीन साल से यानी 2016 से 2019 के बीच गांधीजी की चर्चा और बढ़ी है। 2016 में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष की शुरुआत हुई, 2017 में सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर आयोजनों का सिलसिला चला। 2018 में गांधीजी के 150वें जयंती वर्ष की शुरुआत हुई है। अक्तूबर 2018 से अक्तूबर 2019 तक पूरी दुनिया में गांधीजी को केंद्र में रखकर विविध आयोजन होने हैं, हो रहे हैं। इस क्रम में गांधीजी के विविध आयामों से जुड़ी पुस्तकों को, दस्तावेजों को देखने की कोशिश की-खरीदकर, लाइब्रेरी से फोटोकॉपी करवाकर। साथियों-प्राध्यापकों-शोधार्थियों-पत्रकारों-विद्वज्जनों के सहयोग से। चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर बिहार को केंद्र में रखकर भी कई नई पुस्तकें आईं। प्रायः अधिसंख्य पुस्तकों को देखने का मौका मिला, लेकिन एक बात खटकती रही कि देश-दुनिया में गांधीजी पर इतनी बातें हो रही हैं, उनकी गतिविधियों से जुड़े छोटे-छोटे दस्तावेज भी बड़े रूप में, बड़े फलक पर सामने आ रहे हैं, पर गांधीजी के उन दिनों के दक्षिण बिहार (अब झारखंड) की यात्राओं का अध्याय क्यों छूटता जा रहा या नहीं आ पा रहा, जबकि चंपारण सत्याग्रह आंदोलन को एक आकार देने में दक्षिण बिहार, यानी अब का झारखंड एक अहम केंद्र की तरह था। इस किताब में अनुज सिन्हा ने एक अहम इतिहास का दस्तावेजीकरण किया है। इतिहास जानना इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि भविष्य के सपनों या भविष्य की भव्य इमारत इतिहास की पुख्ता नींव पर ही खड़ी हो सकती है। इस दृष्टि से यह उल्लेखनीय काम है।