Lok Kavi Ab Gaate Nahin (Bhojpuri Upnyas)

Lok Kavi Ab Gaate Nahin (Bhojpuri Upnyas) लोक कवि अब गाते नहीं (भोजपुरी उपन्यास)

Paperback (14 Aug 2023) | Hindi

  • $18.77
Add to basket

Includes delivery to the United States

10+ copies available online - Usually dispatched within 7 days

Publisher's Synopsis

मशहूर हिंदी साहित्यकार दयानंद पाण्डेय के लिखल हिंदी उपन्यास "लोक कवि अब गाते नहीं" भोजपुरी भाषा, ओकरा गायकी आ भोजपुरी समाज के क्षरण के कथे भर ना होके लोक भावना आ भारतीय समाज के चिंता के आइनो है। गांव के निर्धन, अनपढ़ आ पिछड़ी जाति के एगो आदमी एक जून भोजन, एगो कुर्ता पायजामा पा जाए का ललक आ अनथक संघर्ष का बावजूद अपना लोक गायकी के कइसे बचा के राखऽता, ना सिर्फ लोक गायकी के बचा के राखता बलुक गायकी के माथो पर चहुँपत बाई उपन्यास एह ब्यौरा के बहुते बेकली से बांचता। साथ ही साथ माथ पर चहुँपला का बावजूद लोक गायक के गायकी कइसे अउर निखरला का बजाय बिखर जात बिया, बाजार का दलदल में दबत जात बिया, एही सचाई के ई उपन्यास बहुते बेलौस हो के भाखता, एकर गहन पड़ताल करता। लोक जीवन त एह उपन्यास के रीढ़ हइले ह । आ कि जइसे उपन्यास के अंत में नई दिल्ली स्टेशन पर लीडर - ठेकेदार बब्बन यादव के बेर-बेर कइल जाए वाला उद्घोष 'लोक कवि जिंदाबाद!" आ फेर छूटते पलट के लोक कवि के कान में फुसफुसा - फुसफुसा के बेर-बेर ई पूछल, लेकिन पिंकीआ कहां बिया?" लोक कवि के कवनो भाला जस खोभता आउनुका के तूड़ के राख देत बा। तबहियो ऊ निरुत्तर बाड़े। ऊ आदमी जे माथ पर बइठिओ के बिखरत जाए ला मजबूर हो गइल बा, अभिशप्त हो गइल बा, अपने रचल, गढ़ल बाजार के दलदल में दबा गइल बा। छटपटा रहल बा कवनो मछली का तरह आ पूछत बा, 'लेकिन भोजपुरी कहां बिया?" बतर्ज बब्बन यादव, 'लेकिन पिंकीआ कहां बिया?" लोक गायकी पर निरंतर चलत ई जूते लोक कवि अब गाते नहीं' के शोक गीत ह! आ संघर्षो गीत!

Book information

ISBN: 9789356845947
Publisher: Repro India Limited
Imprint: Diamond Pocket Books Pvt Ltd
Pub date:
Language: Hindi
Number of pages: 172
Weight: 227g
Height: 216mm
Width: 140mm
Spine width: 10mm