Publisher's Synopsis
उन्]नीसवीं सदी के उत्]तरार्ध के भारतीय नवजागरण के अग्रणी नेताओं में स्]वामी विवेकानन्]द का स्]थान अन्]यतम है। इतिहासकार एक मत से बीसवीं सदी के शुरू में राष्]ट्रीय आंदोलन में आये नये मोड़ में स्]वामीजी के कार्यों और संदेश का बड़ा योगदान मानते हैं। विवेकानंद द्वारा भारत की गरिमा को पुन जगाने का प्रयास मात्र राजनैतिक दासत्]व की समाप्ति के लिए नहीं था। दासत्]व की जो हीन भावना हमारे संस्]कार में घुल-मिल गयी है उससे भी त्राण पाने का मार्ग उन्]होंने बताया। विवेकानंद बड़े स्]वपन्]द्रष्]टा थे। उन्]होंने एक नये समाज की कल्]पना की थी, ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्]य-मनुष्]य में कोई भेद नहीं रहे। उन्]होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्]यात्]मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकताहै कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्]द ने दिया, उससे सबल बौदि्धक आधार शायदही ढूंढा जा सके। विवेकानन्]द को युवकों से बड़ी आशाएं थीं। आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्]वी संन्]यासी का यह जीवन-वृत्]त लेखक उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृ]ष्]ठभूमि के संदर्भ में उपस्थित करने का प्रयत्]न किया है यह भी प्रयास रहा है कि इसमें विवेकानंद के सामाजिक दर्शन एव उनके मानवीय रूप का पूरा प्रकाश पड़े।