Publisher's Synopsis
आदतन आदमी यही मानकर जीवन जीता है कि वही सबकुछ है। जीवन भर ख़ुद को केंद्रीय भूमिका में होने का दंभ भरता है और समझता है कि परिवार, नाते-रिश्तेदार व परिचितों की ज़िंदगी में उसका प्रमुख स्थान है। इस ख़ुशफ़हमी की असलियत तब सामने आती है जब यह केंद्र में होने का उसका भ्रम अूटता है।
बीती सदी के सबसे चर्चित और महान लेखकों में से एक फ़्रांज़ काफ़्का की क्लासिक पुस्तक मेटामॉर्फ़ोसिस ज़िंदगी के सत्य से रूबरू कराती है। ग्रेगर सैम्सा नाम का सेल्समैन एक दिन कीड़े में बदल जाता है, इसके बाद जीवन के सुखद पल उसके और उसके परिवार के लिए कैसे दूभर हो जाते हैं। बावजूद इसके निराशा से आशा की ओर बढ़ना इस पुस्तक का प्रमुख कथ्य है। काफ़्का यूं तो निराश्य व यथार्थ लेखन के लिए जाने जाते हैं, लेकिन यहाँ उन्होंने एक सेल्समैन के कीड़े में बदलने और उसके जरिए मानवीय स्वभाव को बड़ी सहजता, सरलता और रोचकता से कलम बद्ध किया है। काफ़्का इस कहानी के माध्यम से बता रहे हैं कि जीवन में आकस्मिक और अप्रत्याशित घटनाएँ घटती हैं, लेकिन जीवन कभी रुकता नहीं और रुकना भी नहीं चाहिए।